Monday, October 17, 2016

विशेष फलदायी है इस बार का करवा चौथ #KarvaChauth,

करवा चौथ- 19 अक्टूबर
इस बार की विशेष है- क्योंकि 100 साल बाद आया है ऐसा करवाचौथ

सुहागिनें हर साल अपने पति की लंबी उम्र की कामना में करवाचौथ का व्रत रखती हैं. लेकिन इस बार करवाचौथ कुछ खास है. करवाचौथ पर पूरे सौ साल बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बन रहा है. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इस बार करवाचौथ का एक व्रत करने से 100 व्रतों का वरदान मिल सकता है.


मंगलवार की रात्रि 11 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी और इसके बाद से चतुर्थी तिथि आरंभ होकर बुधवार की सायं  07.33 बजे तक रहेगी ।

आइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि कौन से योग इस करवाचौथ को दिव्य और चमत्कारी बना रहे हैं....

100 साल बाद करवाचौथ का महासंयोग
- करवा चौथ का त्यौहार इस बार बुधवार को मनाया जा रहा है.
- बुधवार को शुभ कार्तिक मास का रोहिणी नक्षत्र है.
- इस दिन चन्द्रमा अपने रोहिणी नक्षत्र में रहेंगे.
- इस दिन बुध अपनी कन्या राशि में रहेंगे.
- इसी दिन गणेश चतुर्थी और कृष्ण जी की रोहिणी नक्षत्र भी है.
- बुधवार गणेश जी और कृष्ण जी दोनों का दिन है.
- ये अद्भुत संयोग करवाचौथ के व्रत को और भी शुभ फलदायी बना रहा है.
- इस दिन पति की लंबी उम्र के साथ संतान सुख भी मिल सकता है.

करवाचौथ क्यों है इतना खास
कहते हैं जब पांडव वन-वन भटक रहे थे तो भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को इस दिव्य व्रत के बारे बताया था. इसी व्रत के प्रताप से द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी उम्र का वरदान पाया था.

आइए जानें, इस दिन किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और इस व्रत से कौन-कौन से वरदान पाए जा सकते हैं....
- करवाचौथ के दिन श्री गणेश, मां गौरी और चंद्रमा की पूजा की जाती है.
- चंद्रमा पूजन से महिलाओं को पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख का वरदान मिलता है.
- विधि-विधान से ये पर्व मनाने से महिलाओं का सौंदर्य भी बढ़ता है.
- करवाचौथ की रात सौभाग्य प्राप्ति के प्रयोग का फल निश्चित ही मिलता है.

करवा चौथ के व्रत के नियम और सावधानियां 
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इस बार करवाचौथ का ये व्रत हर सुहागिन की जिंदगी संवार सकता है, लेकिन इसके लिए इस दिव्य व्रत से जुड़े नियम और सावधानियों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. आइए जानते हैं कि इस अद्भुत संयोग वाले करवाचौथ के व्रत में क्या करें और क्या ना करें...
- केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो वही स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं.
- व्रत रखने वाली स्त्री को काले और सफेद कपड़े कतई नहीं पहनने चाहिए.
- करवाचौथ के दिन लाल और पीले कपड़े पहनना विशेष फलदायी होता है.
- करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है.
- ये व्रत निर्जल या केवल जल ग्रहण करके ही रखना चाहिए.
- इस दिन पूर्ण श्रृंगार और अच्छा भोजन करना चाहिए.
- पत्नी के अस्वस्थ होने की स्थिति में पति भी ये व्रत रख सकते हैं.

करवाचौथ व्रत की उत्तम विधि
आइए जानें, करवाचौथ के व्रत और पूजन की उत्तम विधि के बारे जिसे करने से आपको इस व्रत का 100 गुना फल मिलेगा...
- सूर्योदय से पहले स्नान कर के व्रत रखने का संकल्पत लें. - फिर मिठाई, फल, सेंवई और पूड़ी वगैरह ग्रहण करके व्रत शुरू करें.
- फिर संपूर्ण शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें.
- गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं.
- भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें.
- श्री कृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं.
- उनके सामने मोगरा या चन्दन की अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं.
- मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं.
- कर्वे में दूध, जल और गुलाबजल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें.
- इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार जरूर करें, इससे सौंदर्य बढ़ता है.
- इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए.
- कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए.
- फिर पति के पैरों को छूते हुए उनका आर्शिवाद लें.
- पति को प्रसाद देकर भोजन कराएं और बाद में खुद भी भोजन करें.

Saturday, October 15, 2016

कार्तिक मास


भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, 'पौधों में मुझे तुलसी, मासों में कार्तिक, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के अत्यंत निकट है।'

कार्तिक मास प्रारंभ 17 अक्टूबर से शुरू...

जैसे सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के सदृश कोई तीर्थ नहीं है वैसे ही कार्तिक के समान कोई मास नहीं है। यह मास भगवान विष्णु के निद्रा से जागने का महीना है और कई तरह से पुण्य अर्जित करने का सुयोग लाता है।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक वर्ष का आठवां महीना है। इस मास को हिंदू धर्म में अत्यंत पुनीत महीना माना गया है। इसे दामोदर मास भी कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, 'पौधों में मुझे तुलसी, मासों में कार्तिक, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के अत्यंत निकट है।'
इससे कार्तिक मास की महत्ता स्पष्ट हो जाती है। भारत के सभी तीर्थों पर जाने का पुण्य इस एक मास में ही प्राप्त करने का सुयोग बनता है। यही वजह है कि इस मास को मोक्ष का द्वार भी कहा गया है।
कार्तिक मास में ईश्वरीय आराधना से सभी कुछ प्राप्त करने की व्यापक संभावनाएं होती हैं। कहा जाता है कि जब शंखासुर वेदों को चुराकर समुद्र में ले गया तो भगवान विष्णु ने कहा था कि 'आज से मंत्र-बीज और चारों वेद प्रतिवर्ष कार्तिक मास में जल में विश्राम करेंगे।'
यही वजह है कि कार्तिक स्नान को अक्षय फल प्रदाता कहा जाता है। इस मास में व्रत करने से कीर्ति, तेज, आयु, संपत्ति, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में चंद्रमा अपनी किरणें सीधी पृथ्वी पर डालता है। चंद्रमा की किरणों से ऊर्जायित जल में स्नान से मनुष्य को लाभ मिलता है।
यही वजह है कि इस मास में शरद पूर्णिमा को प्रात: स्नान करना और चंद्रमा की रोशनी में बने पदार्थों का सेवन करने का विधान है। इस मास में लक्ष्मीजी की कृपा पाने के लिए तन, मन व घरेलू वातावरण की स्वच्छता पर भी जोर दिया गया है।
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक माह में यक्षों की पूजा की जाती है। इस समय देव, गंधर्व, ऋषि आदि गंगा स्नान के लिए आते हैं तथा पवित्र तीर्थों में निवास करते हैं। जहां इस मास में स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए भगवान धन्वंतरी की आराधना की जाती है तो यम को संतुष्ट कर पूर्ण आयु का वरदान पाने का अवसर भी रहता है।
इसी मास की अमावस्या को संपूर्ण संसार मां लक्ष्मी की पूजा कर धन-धान्य पाता है। इसी मास की एकादशी को विगत चार माह से निद्रा में लीन भगवान विष्णु जागृत हो जाते हैं और सभी आराधनाओं का शाश्वत फल प्रदान करते हैं।
कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं जैसे उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नाति, देवकृपा आदि की प्राप्ति बहुत सहजता से हो जाती है। स्कंदपुराण में इस माह को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला कहा गया है।
दान व स्नान का विशेष महत्व
पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी आदि तीर्थ कार्तिक में ाान और दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं। इन स्थानों पर दीपक जलाने या दीपदान करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस मास में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश बहुत महत्व है।
यूं आश्विन शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष तक पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है। श्रद्धालु गंगा तथा यमुना में सुबह-सवेरे स्नान कर पुण्य लाभ पाते हैं। जो इन नदियों तक स्नान करने के लिए नहीं जा पाते हैं वे अपने समीप के किसी जलाशय में स्नान करके पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं।
मान्यता है कि इस मास में हर नदी का जल गंगा के सदृश हो जाता है। कुछ लोग अपने घरों में ही सूर्योदय पूर्व स्नान करके भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं।
सभी के लिए मास का महत्व
कार्तिक मास का महत्व शैव, वैष्णव और सिख धर्म के लिए भी बहुत ज्यादा है। इसी मास में भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्यावतार हुआ था। भगवान ने यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों तथा राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लिया था। इससे सृष्टि का निर्माण फिर से संभव हुआ।
कार्तिक मास के पंचकर्म
इस महीने में आचरण में पांच अनुशासन का पालन महत्वपूर्ण बताया गया है। इन अनुशासनों का पालन करने से जीवन में वास्तविक प्रगति की संभावनाएं बढ़ती हैं।
1- दीपदान कीजिए- कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की रातें वर्ष की सबसे ज्यादा अंधकार वाली रातें होती हैं। भगवान विष्णु के जागने से पहले इन पंद्रह दिनों में प्रतिदिन दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को आलोकित कर सकें।
2- तुलसी पूजा पुण्यदायी- इस महीने में तुलसी की पूजा का भी विशेष महत्व है। भगवान विष्णु तुलसी के हृदय में शालिग्राम के रूप में निवास करते हैं। स्वास्थ्य को समर्पित इस मास में तुलसी पूजा व तुलसी दल का प्रसाद ग्रहण करने से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
3- भूमि शयन करें- यह मास विलासिता और आराम से मुक्त होने का भी है। यही वजह है कि इस अवसर पर आरामदायक बिस्तर छोड़कर भूमि पर शयन का अनुशासन पालना चाहिए। इससे जहां स्वास्थ्य लाभ होता है वहीं शारीरिक और मानसिक विकार भी दूर होते हैं।
4- ब्रह्मचर्य का पालन- इस महीने में ब्रह्मचर्य का पालन करना इसलिए जरूरी बताया गया है ताकि आपके मानसिक विकार दूर हों। ब्रह्मचर्य के पालन का अर्थ यही है कि किसी भी ऐसे आचरण से खुद को दूर रखें जिससे आप ईश्वर से दूर होते हैं। ईश्वर के प्रति आपका आकर्षण कम हो ऐसा कोई काम न करें।
5- द्विदलन निषेध- कार्तिक मास में दालों के सेवन का निषेध है। इस मास में हल्के-फुल्के भोजन को ही उत्तम बताया गया है। व्यक्ति को इस मास अपने आहार को संतुलित करना चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य को पा सके। आहार और व्यहार की शुद्धता ही इस मास का ध्येय है।